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जीवन है अनसुझी पहेली -15-May-2023

कविता - जीवन है अनसुझी पहेली 


हे! मां आकर मुझे बताओ

यह मुझे समझ ना आए क्यों?

सब क्यों उलझा उलझा लगता

यह कोई ना समझाए क्यों?


पूछो पूछो पुत्र सयाने

है खीझा खीझा उलझा क्यों?

कौन प्रश्न हैं इतना भारी

जो नहीं अभी तक सुलझा क्यों?


जीवन क्यों अनसुझी पहेली

समझ नहीं कोई पाता क्यों?

नए नए सपनों में सबका 

पूरा जीवन खो जाता क्यों?


सोंचो कुछ हो कुछ जाता है

रहस्य समझ नही आते क्यों?

सारे नदियों के जल मीठे

सागर खारे हो जाते क्यों?


सुख दुख भी है हार जीत भी

गम से मारे ही जाते क्यों?

जीवन के हर बड़े खिलाड़ी

जीवन-हारे मिल जाते क्यों?


देखा है वह चमक चांदनी

कभी कभी खो जाते क्यों?

दूर गगन में उड़ते पंक्षी

फिर उतर धरा पर आते क्यों?


झरते झरने बहती नदियां

भी दूर तलक बह जाते क्यों?

कभी किनारा गले ज्यों मिलते

फिर कभी लुप्त हो जाते क्यों?


जीवन का क्या मूल्य यहां पर

है कोई समझ न पाए क्यों?

मरने वाला कहां को जाता? 

वह लौट नही फिर आए क्यों। 


नन्हीं नन्हीं बीज धरा पर 

वे पेड़ बड़े बन जाते क्यों?

अपने फल को खुद ना खाकर

सब नीचे खूब गिराते क्यों?


 हे! बेटा यह प्रश्न कठिन है

कैसे तुमको बतलाऊं मैं,

जीवन है अनसुझी पहेली

कैसे तुमको समझाऊं मैं। 



                रचनाकार -

          रामबृक्ष बहादुरपुरी 

      अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश 




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8 Comments

Milind salve

16-May-2023 08:04 AM

बहुत खूब

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Abhinav ji

16-May-2023 07:05 AM

Very nice 👍

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VIJAY POKHARNA "यस"

15-May-2023 04:30 PM

Nice 👍

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